5 Jan 2012

जब इंसान ने महसूस किया गॉड पार्टिकल

मशहूर भारतीय वैज्ञानिक सत्येंद्रनाथ बोस ने आंइस्टीन के साथ मिलकर एक फार्मूला पेश किया, जिससे खास तरह के कणों का गुण पता चलता है। ऐसे कण बोसोन कहलाते हैं। दरअसल ब्रह्मांड की हर वस्तु तारा, ग्रह, उपग्रह व जीव जगत पदार्थ या मैटर से बना है। मैटर का निर्माण अणु-परमाणु से हुआ है। जबकि मास या द्रव्यमान वह भौतिक गुण है, जिनसे इन कणों को ठोस रुप मिलता है। अगर मास नहीं है तो कण रोशनी की रफ्तार से भगेगा, दूसरे कणों के साथ मिलकर संघनित होने की संभावना नहीं बनती। यही मास जब ग्रेविटी से गुजरता है तो भार कहा जाता है। लेकिन भार मास नहीं होता, क्योंकि ग्रेविटी कम या ज्यादा होने पर वह बदल जाता है। वहीं मास एक जैसा रहता है।
कणों के सूक्ष्मतम स्तर तक पहुंचने के क्रम में वैज्ञानिकों को यह पता नहीं चल पाया कि मास कहां से आता है। फिजिक्स में जब इन तमाम कणों को एक सिस्टम में रखने की कोशिश की गई स्टैंडर्ड मॉडल ऑफ पार्टिकल्स तो एक गैप दिखा। 1965 में पीटर हिग्स ने हिग्स बोसोन या गॉड पार्टिकल का आइडिया पेश किया। इस सिद्धांत में बोसोन ऐसा मूल कण था, जिसका एक क्षेत्र था और यूनिवर्स में इसकी हर जगह मौजूदगी थी। जब इस फील्ड से दूसरा कोई कण गुजरता तो उसे रुकावट का सामना करना पड़ता। लेकिन इस सिद्धांत का प्रूव करने के लिए प्रायोगिक सबूत की जरुरत थी।
इसमें असल दिक्कत बोसोन की रोशनी जैसी स्पीड आ रही थी। वजह यह कि उसे देखने के लिए इतनी उर्जा की जरुरत थी, जितनी यूनिवर्स के जन्म पर रही हो। इसी के लिए जेनेवा में सीईआएन यूरोपियन ऑर्गनाइजेशन फॉर न्यूक्लियर फिजिक्स 10 अरब डालर की लागत से 27 किमी लंबी सुरंग बनाई गई। इसे लार्ज हैडान कॉलाइडर कहा गया। इसमें रोशनी की में दौड़ाकर प्रोटान्स की टक्कर कराई गई। इससे जो उर्जा पैदा हुई, उसमें कई कण वजूद में आए। तभी हिग्स बोसोन के पैदा होने का भी संकेत मिला। लेकिन वजूद में आते ही यह खत्म हो गया, लेकिन अपने पीछे निशान छोड़ गया है। फिलहाल यह निशान काफी नहीं। ठोस सबूतों के लिए वैज्ञानिकों को अभी कई बार इसे दुहराना होगा। फिर भी उम्मीद बंधी है।

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